गायत्री हवन

शास्त्रों के अनुसार गायत्री वेदमाता हैं एवं मनुष्य के समस्त पापों का नाश करने की शक्ति उनमें है। गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी कहा गया है। गायत्री मंत्र को वेदों का सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है।
गायत्री हवन करने से मनुष्य के जीवन में आनेवाली शारीरिक,मानसिक,आर्थिक ,सामाजिक,पारिवारिक सभी समस्या का हल हो जाता हे।

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Last updated Tue, 25-Aug-2020 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • गायत्री हवन करने से मनुष्य के जीवन में आनेवाली शारीरिक,मानसिक,आर्थिक ,सामाजिक,पारिवारिक सभी समस्या का हल हो जाता हे।
  • गायत्री हवनअध्यात्म की और ले जानेवाला यह प्रथम चरण है।
  • दूध,दही,घी,एवं शहद को मिलाकर १००० आहुति देने से पेट के रोग,आँखों के रोग ,, चेचक रोग समाप्त हो जाते है।
  • गायत्री मंत्रो के साथ नारियल का चुरा एवं घी का हवन करने से शत्रुओ का नाश होता है।

पूजाविधि के चरण
00:58:34 Hours
स्थापन
1 Lessons 00:08:22 Hours
  • सर्व प्रथम एक लकड़ी का बाजोठ /पाटला / चौकी पर , पीला वस्त्र (१ मीटर) बिछाकर उसके ऊपर मध्य में गायत्री माँ का फोटो या मूर्ति की स्थापना करे। फोटो या मूर्ति के ऊपर कुमकुम ,हल्दी ,अबीर, गुलाल ,पीला चन्दन ,चढ़ाना हे फिर पीले फूलो का हार चढ़ाना है। दायी बाजू मुट्ठी १०० ग्राम चावल की ढेरी लगाकर उसके ऊपर जल से भरा हुआ कलश रखे ,कलश ऊपर पांच कपूरी पान रखे फिर एक श्रीफल उसके ऊपर मौली से बंधा हुआ १ श्रीफल रखे। बायीं और घी से भरा हुआ दीपक जलाये जो पूजा पूरी होने तक चलता रहे। उनके आगे थाली में प्रसाद और सूखे मेवे और मिठाई रखे। 00:08:22
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थं गायत्री हवन करिष्ये। 00:08:22

  • पवित्रीकरण -
    बाएँ हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढँक लें एवं मंत्रोच्चारण के बाद जल को सिर तथा शरीर पर पवित्रता के भाव से छिड़क लें ।
    ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा ।
    यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
    ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।

    आचमन –
    वाणी, मन व अंतःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से तीन बार जल का आचमन करें ।
    हर मंत्र के साथ एक-एक आचमन करें ।
    १)ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।
    २)ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।
    ३)ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ।

    शिखा स्पर्श एवं वंदन -
    ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते ।
    तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे ॥

    प्राणायाम -
    श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है । श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं ।
    प्राणायाम निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ करें ।
    ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्।
    ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
    ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।

    न्यास –
    बाएँ हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को जल में भिगोकर बताए गए स्थान को हर मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें ।
    ॐ वाङ् मे आस्येऽस्तु । (मुख को)
    ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु । (नासिका के दोनों छिद्रों को)
    ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु । (दोनों नेत्रों को)
    ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु । (दोनों कानों को)
    ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु । (दोनों भुजाओं को)
    ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु । (दोनों जंघाओं को)
    ॐ अरिष्टानि मेऽङ्गानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु । (समस्त शरीर पर)

    ध्यान मंत्र :-
    ॐ आयातु वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।
    गायत्रिच्छन्दसां मातः! ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥
    ॐ श्री गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि,ततो नमस्कारं करोमि।
    गायत्री मंत्र को गुरू मंत्र भी कहा जाता है इसलिए बिना गुरू के साधना का फल देरी से मिलने संभावना रहती हैं इसलिए साधक के जो भी गुरू हो उनकी चेतना का आवाहन उपासना की सफलता पूजा स्थल पर निम्न मंत्र से करें:-
    ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः।
    गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
    अखण्डमंडलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्।
    तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
    ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

    आवाहन के पश्चात् :-
    जल, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप तथा नैवेद्य आदि पांच पदार्थ प्रतीक के रूप में माँ के समक्ष अर्पित करें ।

    हवन मंत्र :-
    ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
    मंत्र की जप संख्या आपने जो निर्धारित की है वह पूर्ण करके बाद की गयी मंत्र संख्या का दशांश का हवन करना है।या फिर किसी ब्राह्मण के पास करवाना चाहिए।
    गायत्री हवन में घी से आहुति देनी है।
    अंत में श्रीफल / सुपारी को मौली बांधकर जिस मनोकानमा से हवन किया गया है वो पूर्ण हो ,वही मन में इच्छा करके श्रीफल की आहुति दे देनी है I

    विसर्जन :-
    आरतीसमाप्ति के बाद पूजा वेदी पर रखे छोटे कलश का जल सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के भाव से पूर्व दिशा में सूर्य भगवान को र्अघ्य रूप में निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ चढ़ायें :-
    ॐ सूर्यदेव! सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते।
    अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥
    ॐ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः॥

    दान -दक्षिणा :-
    सब करने के बाद दान स्वरूप अपनी कमाई के एक अंश किसी ब्राह्मण को दान अवश्य करें। या फिर ब्राह्मण और छोटी कन्या को भोजन अवश्य करवाये।
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  • जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
    सात मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥
    आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री।
    दुःख शोक भय क्लेश कलह दारिद्र्य दैन्य हर्त्री॥१ ॥
    ब्रह्मरूपिणी, प्रणत पालिनी, जगत धातृ अम्बे।
    भव-भय हारी, जन हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥२ ॥
    भयहारिणि, भवतारिणि, अनघे अज आनन्द राशी।
    अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥३ ॥
    कामधेनु सत-चित-आनन्दा जय गंगा गीता।
    सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥४ ॥
    ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे।
    कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्रा शोभा गुण गरिमे॥५ ॥
    स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी।
    जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी॥६॥
    जननी हम हैं दीन, हीन, दुःख दारिद के घेरे।
    यदपि कुटिल, कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे॥७॥
    स्नेह सनी करुणामयि माता चरण शरण दीजै।
    बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥८ ॥
    काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
    शुद्ध, बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये॥९ ॥
    तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि, पुष्टि त्राता।
    सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता॥१०॥
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  • मेवे की मिठाई / बूंदी / श्रद्धा अनुसार नैवेद्य
पूजन सामग्री
  • बाजोठ -१
  • कपडा पीला /लाल और सफ़ेद -सवा मीटर
  • गायत्री माता की फोटो या मूर्ति
  • कलश ( ताम्बा ) -१
  • पंचपात्र (कटोरी)-तरभाणु(थाली)-आचमनी(चम्मच ) - ३ नंग सब
  • श्रीफल
  • कुमकुम ( रोली ) - १० ग्राम
  • चावल - १० ग्राम
  • अबीर -१० ग्राम
  • गुलाल - १० ग्राम
  • लौंग -१० ग्राम
  • कच्चा दूध - १०० ग्राम
  • दही -१०० ग्राम
  • शहद - २५० ग्राम
  • शक्कर - २५० ग्राम
  • नाराछड़ी / मौली
  • पंचमेवा - २५० ग्राम ( काजू,बादाम ,किशमिश,चिरौंजी,छुआरे )
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • पंचामृत - दूध ,दही, घी, शहद,शक़्कर
  • पांच फल - केले,अनार,चीकू,इत्यादि
  • नैवेद्य - श्रद्धा अनुसार
  • दीपक - रुई - कपूर
  • पान
  • फूलो के हार और फूल अलग से
  • हवन सामग्री
  • देशी घी - ५०० ग्राम
वर्णन
सनातन धर्म में गायत्री मां से ही चारों वेदों की उत्पति मानी जाती हैं। इसलिये वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को माना जाता है। मान्यता है कि चारों वेदों का ज्ञान लेने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है अकेले गायत्री मंत्र को समझने मात्र से चारों वेदों का ज्ञान मिलता जाता है।
वेदों में उल्लेख आता हैं कि माँ गायत्री की पूजा उपासना कभी भी, किसी भी स्थिति में की जा सकती है । हर स्थिति में यह लाभदायी है, परन्तु विधिपूर्वक श्रद्धा भावना के साथ की गयी उपासना अति फलदायी मानी गयी है ।
गायत्री मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं।गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए। मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर का। तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए।
इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। मंत्र जप तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।
जप करते समय बंद नेत्रों से उगते हुए सूर्य का ध्यान करने से मंत्र जप का फल अधिक मिलता हैं ।